नई दिल्ली। हर बीतते दिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चैंपियन ऑलराउंडर के रूप में स्थापित होते जा रहे हैं। लोकप्रिय नेता भी और संगठनकर्ता भी, सख्त प्रशासक भी और कुशल संवादकर्ता भी, पॉपुलिस्ट भी और रिफॉर्मिस्ट भी। यही कारण है कि विशेषकर पिछले एक साल में विपक्षी और आलोचक कुछ अवसरों पर उत्साहित हुए कि अब घेरा, तब घेरा..लेकिन मोदी की छवि और सशक्त ही होती चली गई। कोरोना, चीन और अर्थव्यवस्था के तीन अहम मोर्चो पर मोदी को बांधने की हर कोशिश हुई, लेकिन वह इस बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति से लगभग बाहर आकर खड़े हो गए हैं। दरअसल ये तीन ऐसे मोर्चे हैं जिन पर न सिर्फ घरेलू छवि बल्कि अंतरराष्ट्रीय छवि भी निर्भर करती है।
इस वर्ष पूरा विश्व कोरोना से ग्रसित रहा और विपक्ष का मस्तिष्क भी। क्योंकि कोरोना और उसके बाद चीन की आक्रामकता से एकजुट लड़ाई लड़ने की बजाय निशाना केंद्र सरकार और सीधे प्रधानमंत्री मोदी बनने लगे। स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में यह संकट बहुत बड़ा था, लेकिन कभी अपनी संवाद कला के जरिए जनता और डॉक्टरों से संवाद कर, कभी जरूरी निर्माताओं से मशविरा कर, कभी कालाबाजारियों को चेतावनी देकर तो कई बार सभी मुख्यमंत्रियों को भरोसे में लेकर उन्होंने भारत को सुरक्षित मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया।
आर्थिक मोर्चे पर भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बड़ी कवायद शुरू हुई। वहीं अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत पहली बार न सिर्फ चीन की विस्तारवादी नीति को रोकने मे सफल रहा बल्कि चीन की आर्थिक नींव पर भी प्रहार किया। पूर्व और दक्षिण पूर्व की कूटनीति में संतुलन लाने के लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी ने नई कूटनीति की आधारशिला रख दी जो उनकी वैश्विक छवि को और बुलंद करती है। रोचक तथ्य यह है कि इन सभी संकटों में राजनीतिक अवसर तलाश रहे विपक्ष को मोदी ने चुनावी बिसात पर भी मात दे दी। झुकाने और तोड़ने की कवायद अभी भी जारी है। शाहीन बाग के बाद अब टिकरी और सिंधु बॉर्डर को लड़ाई का अखाड़ा बनाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया है कि लोकलुभावन और सुधारवादी में उनकी पहली पसंद सुधार है।
Narendra Modi is the Champion of ALL
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